लाटू देवता

ऐसा मंदिर जहां आंखों पर पट्टी बांधकर होती है पूजा 

देवभूमि उत्तराखंड का विश्व प्रसिद्ध लाटू देवता का मंदिर! इस मंदिर में पुजारी और श्रद्धालु दोनों ही देव दर्शन नहीं कर सकते. पुजारी जहां आंख और मुंह पर पट्टी बांधकर मंदिर में दाखिल होते हैं, वहीं श्रद्धालु 77 फीट दूरी पर रहते हैं.



लाटू देवता की कहानी

पौराणिक कथाओं के अनुसार लाटू देवता उत्तराखंड की आराध्य देवी नंदा के भाई हैं. देवी नंदा माता पार्वती का ही स्वरूप हैं. जब देवी पार्वती का भगवान शिव से विवाह हुआ तो उनके विदा करने के लिए लाटू समेत उनके सभी भाई कैलाश पर्वत तक गए. इस बीच लाटू देवता को प्यास लगी और वह पानी पीने के लिए इधर-उधर भटकने पर उन्हें एक कुटिया मिली. कुटिया में एक साथ दो मटके रखे थे, जिनमें से एक में पानी और दूसरे में मदिरा थी. लाटू देवता ने गलती से मदिरा पी ली और उत्पात मचाने लगे. जिससे नाराज होकर नंदा देवी यानि माता पार्वती ने उन्हें श्राप दे दिया और बांधकर कैद करने का आदेश दिया. अपनी गलती का अहसास होने पर लाटू ने माफी मांगी और पश्चाताप किया. जिसके बाद मां नंदा देवी ने कहा कि वाण गावं में लाटू का मंदिर होगा और हर साल वैशाख माह की पूर्णिमा के दिन उनका पूजन किया जाएगा. मान्यता है कि तभी लाटू देवता उस मंदिर में सांप के रूप में कैद हैं और वैशाख की पूर्णिमा तिथि के दिन उनका पूजन किया जाता है 

पूजा के समय क्यों बांधी जाती है आंखों पर पट्टी?

लाटू देवता मंदिर में प्रवेश करते समय पुजारी की आंख पर पट्टी बांधता है। ग्रामीणों के अनुसार मंदिर में नाग मणि विराजमान है। मणि के दर्शन करने पर आंखों की रोशनी जा सकती है, इसलिए पुजारी आंख पर पट्टी बांधकर ही मंदिर में प्रवेश करता है और मंदिर से 75 फीट की दूरी पर श्रद्धालु पूजा अर्चना करते हैं। जिस दिन लाटू देवता मंदिर के कपाट खुलते हैं उस दिन यहां पर विष्णु सहस्रनाम व भगवती चंडिका का पाठ भी आयोजित किया जाता है। लाटू देवता को स्थानीय लोग आराध्य देवता मानते हैं। वाण में स्थित लाटू देवता के मंदिर का कपाट सालभर में एक ही बार खुलता हैं। इस दिन यहां विशाल मेला आयोजित होता है। वाण क्षेत्र में लाटू देवता के प्रति लोगों में बड़ी श्रद्धा है। लोग अपनी मनोकामना लेकर लाटू देवता के मंदिर में आते हैं। कहते हैं यहां से मांगी मनोकामना जरूर पूरी होती है

कब खुलते हैं कपाट?

मंदिर के कपाट वर्ष में सिर्फ एक ही बार भक्तों के लिए वैसाख (अप्रैल-मई) की पूर्णिमा को खोल दिए जाते हैं. कपाट खुलने के बाद श्रद्धालु दूर से ही देवता के दर्शन करते हैं.






Post a Comment

Previous Post Next Post